यह नस्ल राजस्थान, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है। यह नस्ल भारत से बाहर भी ईरान में मिलती है, इस नस्ल का चिकन उत्कृष्ट है। मुर्गी दो से चार किलोग्राम वजन की होती है। इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों के चमकीले बाल और लंबे पैर होते हैं।
credit : pinterest
इस नस्ल का मूल नाम कलामासी था, जिसका अर्थ है काले मांस वाला पक्षी। कड़कनाथ जाति मूलतः मध्य प्रदेश में रहती है। कड़कनाथ नस्ल का मीट कई प्रकार की दवा बनाने में भी प्रयोग किया जाता है, यह मुर्गियां हर साल 80 अंडे देती है। जेट ब्लैक, पेन्सिल्ड और गोल्डेन इस नस्ल की प्रमुख किस्में हैं।
credit : pinterest
12 हफ्तों में इनका वज़न 1.5 से 2 किलो होता है। तंदूरी चिकन बनाने में इनका मीट अधिक प्रयोग किया जाता है। ग्रामप्रिया प्रति वर्ष 210–225 अण्डे देती है। इनके अण्डे भूरे रंग के होते हैं और 57 से 60 ग्राम वजन के होते हैं।
credit : pinterest
कर्नाटक पशु चिकित्सा और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलौर ने स्वरनाथ चिकन की एक नस्ल विकसित की है। ये 22 से 23 सप्ताह में पूरी तरह से परिपक्व हो जाती हैं और 3 से 4 किलोग्राम वज़न होता है। इनकी प्रतिवर्ष 180–190 अंडे बनाने की क्षमता है।
credit : pinterest
All India Coordinating Research Project ने इस बहुआयामी चिकन नस्ल को असम में कुक्कुट उत्पादन को बढ़ाने के लिए विकसित किया है। यह चिकन क्रॉस तीन अलग-अलग चिकन नस्लों से आता है: असम स्थानीय (25%), रंगीन ब्रोइलर (25%) और ढेलम लाल (50%)। 40 हफ्तों में, इसके नर चिकन का वज़न 1.8 से 2.2 किलोग्राम होता है।
credit : pinterest
यह कड़कनाथ और कैरी लाल से क्रास है। जनजातीय समुदाय इस किस्म के आंतरिक अंगों को मानवीय बीमारियों के इलाज में प्राथमिकता देता है क्योंकि उनमें गहरा रंगद्रव्य होता है। यह अधिकतर मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में है। यह नस्ल 24 सप्ताह में पूरी तरह से विकसित हो जाती है और मादा 1.2 किलोग्राम और नर 1.5 किलोग्राम वज़न का होता है।
credit : pinterest